चीनी वायुसेना एक शक्ति या छलावा ?
-By Ravi Srivastava (19 July 2023)
फ्लिप फ्लॉप
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) या सीधे शब्दों में कहें तो चीनी वायु सेना को चीनी स्वतंत्रता से बहुत पहले 1921 में एविएशन इकाई के रूप में शुरू किया गया था। 11 नवंबर, 1949 को इसे आधिकारिक तौर पर PLAAF के रूप में नामित किया गया था। PLAAF एक पेचीदा इतिहास रखता है, इसने गृह युद्ध के दौरान उपहार के रूप में पश्चिमी विमान प्राप्त किए, सोवियत संघ में अपने पायलटों को प्रशिक्षित किया, कोरियाई युद्ध में मित्र देशों के साथ 1800 यू टर्न के साथ उन्ही लड़ाकू विमानों के साथ सामना किया, इसने अमेरिका से पूर्ण सहायता लेकर 60 के दशक में सोवियत संघ से लड़कर 3600 का मोड़ लिए। 90 के दशक में एक और यू टर्न ने इसे रूस के साथ फिर से खड़ा कर दिया। PLAAF का तात्कालिक लाभ के लिए लगातार ढुलमुल रवैया केवल विश्वास की कमी को बल देता है जो चीन की राष्ट्रीय पहचान को परिभाषित करने लगा है।
प्रारंभ में मजबूत वायु रक्षा सुनिश्चित करने के लिए आयोजित, PLAAF ने एक बहु-मिशन बल की भूमिका निभाई। 2014 की अमेरिकी डीओडी रिपोर्ट में कहा गया था कि PLAAF अपने इतिहास में अभूतपूर्व पैमाने पर आधुनिकरण कर रहा है’। तब से PLAAF ने स्टील्थ लड़ाकू विमानों, बमवर्षकों, टैंकरों, ट्रांसपोर्टरों और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में नई क्षमताओं को हासिल किया है, जिसका उद्देश्य भविष्य की एयरोस्पेस शक्ति के रूप में उभरना है। रिवर्स इंजीनियरिंग की कला में महारत हासिल करने वाले चीनी उद्योगों ने अब कुछ गुणवत्ता वाले मूल हार्डवेयर का उत्पादन किया है, 5 वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान कार्यक्रम उनमें से एक है। हालांकि, एक तथ्य जांच से पता चलता है – 2,100 लड़ाकू विमानों में से 2/3 से अधिक दूसरी / तीसरी पीढ़ी के हैं, 80% से अधिक इंटरसेप्टर पुराने हैं और सेवा में नई प्रौद्योगिकियों को मान्य किया जाना बाकी है।
वर्तमान तैनाती
वर्तमान में PLAAF पूर्वी और दक्षिणी थिएटरों के प्रभुत्व पर केंद्रित है। यह ताइवानी एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के अंदर बार-बार कर उड़ान भर रहा है। हाल ही में यह नियमित रूप से मेरिडियन लाइन को पार करता रहा है, जो दो पड़ोसियों के बीच एक प्रकार की वास्तविक हवाई सीमा है। J-20 और Su-35 को नए रूप से शामिल किए जाने से PLAAF ताइवान की क्षमताओं का नियमित रूप से परीक्षण कर रहा है। हाल में आधुनिक तकनीक से लैस चीनी Su-35 ने अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में गश्त कर रहे ताइवानी वायु सेना के F-16 को आश्चर्यचकित कर दिया क्योंकि इसने अपनी उपस्थिति को उनसे छिपा रखा और अचानक उनकी रडार स्क्रीन पर दिखाई दिया, जिससे F -16 को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। अविश्वास इसलिए क्योंकि Su-35, जो एक 4++ पीढ़ी का लड़ाकू विमान है उसने अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया, जब तक कि यह दुश्मन विमान के बहुत करीब नहीं हो जाता इसे राडार स्क्रीन पर पता लगाना अत्यंत मुश्किल है। इसने दो मूल्यवान पहलुओं को भी प्रदर्शित किया; सबसे पहले, अपने पूर्वी और दक्षिणी थिएटरों में अपनी शीर्ष फाइटर्स को तैनात करने की चीनी इच्छा और दूसरी, विवादित जल क्षेत्र में अमेरिकी कैरियर स्ट्राइक समूहों की उपस्थिति ने चीन को लगभग दैनिक आधार पर हवा और समुद्र में प्रतिस्पर्धा करने की नीति का पालन करने के लिए मजबूर किया है। इससे आक्रामक पैंतरेबाज़ी की स्थिति पैदा हो गई है, और कभी-कभी लगभग विनाशकारी टकराव होता है। 21 दिसंबर को एक अमेरिकी लड़ाकू विमान को अपने ‘खतरनाक रूप से करीब’ उड़ान भरने वाले चीनी J-11 के साथ टक्कर को रोकने के लिए कदम उठाने पड़े थे। इस इलाके में PLAAF से शायद एक गलती , टकराव को अनियंत्रित गति से बढ़ावा दे सकती है।
मौजूदा जमीनी हकीकत पश्चिमी थिएटर में चीनी आचरण से मेल नहीं खाती। ऐसा प्रतीत होता है की गलवान से भारत के जवाबी कार्यवाही से सीसीपी के सदस्यों को धक्का लगा है। और यह LAC की ख़राब स्थिति और धमकी भरी टिप्पणियों को बढ़ावा दे रहा है। हालांकि, चीन की धमकियां उसे इन अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करने में जरा भी मददगार साबित नहीं होंगे, अगर चीन अपने पश्चिमी थिएटर को भी सक्रिय कर देता हैं। PLAAF के बंगदा, ल्हासा और शिगात्से में न सिर्फ सिमित एयरबेस हैं, बल्कि उन्हें उच्च ऊंचाई से संचालित करने की भी आवश्यकता है। यह पेलोड, विमान के रेंज और उसकी छमता को गंभीर रूप से सीमित करता है, जबकि इसके विरोधी भारत के साथ ऐसा नहीं है। PLAAF पहले ही पूर्वी और दक्षिणी थिएटरों में खुद को बांध चुका है और अमेरिकी उपस्थिति के सामने अपने प्रमुख विमानों को पूरी तरह से पश्चिमी थिएटर पर तैनाती नहीं कर सकता। दरकिनार करने की सुविधा नहीं होगी। लेकिन अलगाववादी दुनिया में किसी के लिए, व्यावहारिकता की पुकार सुनना कभी ताकत नहीं है। वास्तविकता द्वारा जांचना कई बार तर्कसंगत चर्चा की तुलना में बहुत प्रभावी साबित होता है।
वास्तविकता
PLAAF के लिए सबसे अच्छी रणनीति यह है कि वह अपनी सारी ऊर्जा पूर्वी और दक्षिण चीन सागरों पर उभरते खतरों की ओर केंद्रित करे। अपने स्वयं के नेतृत्व द्वारा उठाए गए कदमों के कारण अब यह खुद को एक गंभीर महाशक्ति के खिलाफ खड़ा पाता है जो पूर्वोत्तर, पूर्व और दक्षिण के पड़ोसियों के साथ निकटता से समन्वित है। नीति निर्माताओं और सैन्य रणनीतिकारों के लिए अपने भविष्य के रस्ते तलाशने से पहले थोड़ा इतिहास की तरफ देखना हमेशा अच्छा होता है, पर चीन के साथ ऐसा नहीं लगता है। इतिहास बताता है की अमेरिका ने जिस भी जगह हमला किया है, वह पहले अपने विरोधी को उसके ही पड़ोसी से घेरने की पहल करता है इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में अमेरिकी बेड़े की उपस्थिति के साथ इसे लक्ष्यों तक लगभग 3600 की पहुंच प्राप्त होती है। यहां तक कि अफगानिस्तान जैसे जमीन से घिरे देश का सामना करते हुए दूर तैनात पनडुब्बियों और जहाजों से टॉमहॉक्स मिसाइलों की बारिश की है, चीन के पर्द्रिश्य में यह और भी आसान होगा।
यूक्रेन युद्ध ने तीन महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रतिबिंबित किया है और चीन भी इन तथ्यों को ध्यान में रखे तो अच्छा होगा। सबसे पहले, एक पूर्ण प्रारंभिक सैन्य बेमेल के बावजूद, यूक्रेन ने लगभग एक साल से युद्ध जारी रखा है। दूसरे, अमेरिका ने व्यावहारिक रूप से उपहार में मिली एक नयी रणनीति खोज निकली है, बस पैसों का भुगतान करके यूक्रेनियन सेना को लड़ने की जिम्मेदारी दे दी। तीसरा, एक महाशक्ति की विरासत को धारण करने वाला रूस खुद को तेजी से दुष्चक्र में पा रहा है; यह न तो युद्ध के नुकसान से इनकार करने में सक्षम है और न ही पश्चिम को सैन्य हार्डवेयर भेजने से बचने के लिए बलपूर्वक आदेश देने में सक्षम है जो अंततः युद्ध के मोर्चे पर रुसी समस्याओं को कई गुना बढ़ा रही हैं।
तुलनात्मक रूप से चीन के पास रूस की तुलना में विदेशी मुद्रा भंडार का एक बेहतर भंडार हो सकता है, लेकिन न तो चीनी सेना युद्ध का बड़ा अनुभव रखती है, और न ही इसके हथियार रुसी हथियारों की बराबरी कर सकते हैं । चीन के लिए दुखद तथ्य यह है की उसकी प्रोपोगैंडा मशीनरी कितनी भी अच्छी हो, यह उसको अकेले युद्ध नहीं जीता सकती। पोलित ब्यूरो के मुखपत्र से हाल ही में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट में भारत को उत्तर-पूर्व में उसके एयरबेस के लिए गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि PLAAF नई शक्तियों से लैस इसे मिनटों में बर्बाद कर सकता है। देशभक्ति प्रदर्शित करने के लिए निश्चित रूप से इस मुखपत्र को अपार प्रशंसा मिली होगी, लेकिन ये दावे किसी अन्य को जरा प्रभावित नहीं करते। सैन्य संघर्षों की बुनियादी जानकारी रखने वाला कोई भी विश्लेषक सलाह देता कि लड़ाकू विमानों और मिसाइलों के साथ किसी अन्य देश के एयरबेस पर हमला करना युद्ध की घोषणा है। एयरबेस जैसे फॉरवर्ड इंफ्रास्ट्रक्चर केवल लचीलेपन की सहायता के लिए हैं, कोई देश केवल फॉरवर्ड एयरबेस से युद्ध नहीं लड़ते हैं।
संघर्षों के दौरान तीसरे पक्ष से हस्तक्षेप नहीं करने का भारत का दृष्टिकोण, संभवतः पोलित ब्यूरो के कुछ लोगों को गलवान और अब यांगस्टे में देखी गई चीनी शत्रुता को प्रदर्शित करने में सहज महसूस करा रहा है। भारत ने यह कभी नहीं कहा कि वह भारत-चीन टकराव के काल्पनिक परिदृश्य के दौरान चीन के खिलाफ भारतीय क्षेत्र से दूर सभी तीसरे पक्षों को सक्रिय रूप से उनके सभी स्वेक्छिक सैन्य कार्यवाही को रोकेगा। उस समय भारतीय सरकार को अपने राष्ट्रीय हित में सबसे उपयुक्त एक अलग रास्ता तैयार करने की पूरी स्वतंत्रता होगी। जबकि अमेरिका और इस क्षेत्र में उसके सहयोगियों के लिए, यह चीन द्वारा एक और ‘उपहार’ योग्य अवसर होगा। दुश्मन पर उसके सबसे कमजोर वक़्त पर प्रहार करना हमेशा एक अच्छी रणनीति मानी जाती है, और फिर चीन कोई रूस नहीं है। इसके बावजूद अतिशयोक्ति पूर्ण आत्म-आश्वासन से भरे चीन का वास्तविकता से साक्षात्कार में शायद ज्यादा समय न लगे !