नयी मुश्किलों से जुझता फ्रांस
-By Ravi Srivastava (26 July 2023)
अल्जीरियाई मूल के नाहल एम नाम के 17 वर्षीय युवा की 27 जून को हुई दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के बाद से फ्रांसीसी शहर नांटेरे, लिली, मार्सिले, पेरिस और ल्योंस में बड़े दंगों के दृश्य देखे गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह फ्रांसीसी पुलिस अधिकारियों द्वारा ट्रैफिक उल्लंघन के दौरान की गई एक निर्मम हत्या थी। सोशल मीडिया पर कई असत्यापित वीडियो फुटेज वायरल हो रहे हैं, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे पुलिस पीड़ित की कार के पास बंदूक तानकर पहुंची और गोली मार दी, जबकि पीड़ित ने कथित तौर पर भागने की कोशिश की। नाहल फ्रांसीसी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित थें जिससे उन्हें राज्य द्वारा उत्पीड़न के प्रतीक के रूप में पेश किया गया है। इसके बाद हुए दंगों में मुख्य रूप से स्कूलों, सरकारी इमारतों, दुकानों और वाहनों को निशाना बनाया गया है। जबकि फ्रांसीसी अधिकारियों ने शांति की अपील की, दंगे लगातार छठे दिन जारी रहें। अंतिम ख़बरों तक ये दंगे फ्रांसीसी विदेशी क्षेत्र जैसे रीयूनियन द्वीप और फ्रेंच गयाना में भी फैल गए।
फ्रांसीसी इतिहास ऐसे कई अवसरों को दर्शाता है, पहली बार 1979 में दंगे भड़कें, जब एक अरब युवा को एक सुरक्षा गार्ड ने गोली मार दी थी। 90 के दशक में ऐसे कम से कम पांच घटनाएं हुईं और पिछले दो दशकों में ऐसे छह और बड़े उदाहरण सामने आए हैं। पिछली बार 2017 में फ्रांसीसी अल्पसंख्यक से संबंधित एक व्यक्ति की हिरासत के दौरान फ्रांसीसी पुलिस को नस्लीय दुर्व्यवहार के लिए दोषी ठहराया गया था। फ्रांस की आबादी दुनिया भर के लोगों के मिश्रण का समूह है। फ्रांसीसी कानून राज्य को जातीयता के आधार पर डेटा एकत्र करने से रोकते हैं। हालांकि, कुछ संकेत बताते हैं कि 7 करोड़ की फ्रांसीसी आबादी का लगभग 15% विदेशी मूल का है। फ्रांस आने वाले आप्रवासियों की लगातार वृद्धि हुई है, इसमें से वर्तमान आबादी का लगभग 10% विदेश में जन्मे लोग हैं। फ्रांस के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड इकोनॉमिक स्टडीज (आई0एन0एस0ई0ई) के आंकड़ों के अनुसार, अधिकतम प्रवासी अफ्रीका और एशिया से आए हैं। एक अन्य सांख्यिकी एजेंसी के सिल्वी ले मिनेज़ के अनुसार, फ्रांसीसी आबादी का एक तिहाई आज आप्रवासियों से सम्बंधित है।
जातीय विविधता, धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग, अवैध प्रवास और कुछ स्थानीय नीतिगत फैसलों को फ्रांस में वर्षों से हिंसा के चक्रीय विस्फोट के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। जबकि फ्रांस औद्योगिक क्रांति के बाद से प्रथम विश्व के विकसित देशों का हिस्सा रहा है, यह अपनी जनसांख्यिकीय विविधता के प्रबंधन में संघर्ष कर रहा है। कई पर्यवेक्षकों ने फ्रांसीसी कानूनों को दोषी ठहराया है जो उनके अनुसार अल्पसंख्यक समुदायों की संवेदनशीलता के लिए भेदभावपूर्ण और अपमानजनक प्रतीत होता है। फ्रांस ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों की मनमानी के कई उदाहरण भी देखे हैं। हालांकि यह कानून प्रवर्तन एजेंसीयां निरंतर चुनौती के साथ आम नागरिकों के जीवन और संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए जबरदस्त तनाव में काम करती हैं।
हालांकि वर्तमान मामले में और अतीत के कुछ और उदाहरणों में भी दिखाई देता है, संदिग्ध व्यक्तिगत नैतिकता के साथ ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों द्वारा अनावश्यक हिंसा को बढ़ावा दिया है जिसके परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति का और अधिक नुकसान हुआ है। फ्रांस में आज जो स्थिति सामने आ रही है, वह निस्संदेह गंभीर है क्योंकि राष्ट्रपति मैक्रॉन को जर्मनी की अपनी आधिकारिक यात्रा स्थगित करनी पड़ी है। यह यूरोप में सरकारों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण सवाल भी उठाता है जो यूरोपीय मानवाधिकारों के मुद्दों, आप्रवासन की नीतियों और विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की धार्मिक प्रथाओं के प्रतिबंधों से सम्बंधित कोई आश्वासन नहीं देते हैं। इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से स्थानीय नीति निर्माताओं को अब सतर्क होना चाहिए। उन्हें अल्पसंख्यकों की संवेदनाओं को संबोधित करने के लिए कार्य करना चाहिए, क्योंकि गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार एक सार्वभौमिक आवश्यकता है। अलगाव की भावना को राज्य की मनमानी के संकेतों से तेजी से बढ़ावा मिलता है। अभी समय है कि सब समझदारी से काम ले और जल्द से जल्द देश में पुनः शांति कायम होने दें ।